जो महरम-ए-गुलज़ार-ए-जहाँ होते हैं
वो अपनी लताफ़त को कहाँ खोते हैं
हँसना हो अगर हँसते हैं ग़ुंचे की तरह
रोते हैं तो शबनम की तरह रोते हैं
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Anwar Masood
Habib Jalib
Javed Akhtar
Gulzar
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Jaun Eliya
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रूह की आँच में उबाला है
चोट खा कर भी मुस्कुराता हूँ
चाँदनी से धुली हुई रातें
डूब कर पार उतर गए हैं हम
अल्लाह रे बे-ख़ुदी कि तिरे पास बैठ कर
बद-गुमाँ मुझ से न ऐ फ़स्ल-ए-बहाराँ होना
कश्मकश
नारवा है किसी की हमराही
माहौल से ज़ुल्मत की रिदा हटती है
मेरी ग़मगीन ओ ज़र्द सूरत को
हयात है कि मुसलसल सफ़र का आलम है
एक आम सी लड़की