अक़्ल से सिर्फ़ ज़ेहन रौशन था
इश्क़ ने दिल में रौशनी की है
Habib Jalib
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Anwar Masood
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महफ़िल उन की साक़ी उन का
रात की पुर-सुकूत ज़ुल्मत में
राख
अल्फ़ाज़ की रग रग में रचाता हूँ लहू
तिरा तज़्किरा सू-ब-सू क्यूँ करें हम
इस ग़म-ओ-यास के समुंदर में
दुनिया है इरम से भी हसीं देख ज़रा
नारवा है किसी की हमराही
मस्लहत
इंतिक़ाम-ए-ग़म-ओ-अलम लेंगे
बद-गुमाँ मुझ से न ऐ फ़स्ल-ए-बहाराँ होना
एक एक्ट्रेस