इस ग़म-ओ-यास के समुंदर में
कोई आसूदगी की लहर नहीं
ज़िंदगी हिचकियों की नगरी है
ज़िंदगी क़हक़हों का शहर नहीं
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Gulzar
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Parveen Shakir
Wasi Shah
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
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Ahmad Faraz
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बिजलियों की हँसी उड़ाने को
डूब कर पार उतर गए हैं हम
साक़िया साक़िया सँभाल उसे
सरहद-ए-होश से गुज़रता हूँ
अल्फ़ाज़ की रग रग में रचाता हूँ लहू
लाख काटो रगें सदाक़त की
फिर इस दुनिया से उम्मीद-ए-वफ़ा है
एक धोका है ये शब-रंग सवेरा क्या है
अमृत से फ़ज़ाएँ दम-ब-दम धुलती हैं
बीते हुए लम्हों का इशारा ले कर
एक क्लर्क लड़की
कौन सुलगते आँसू रोके आग के टुकड़े कौन चबाए