दुनिया है इरम से भी हसीं देख ज़रा
आकाश पे हँसती है ज़मीं देख ज़रा
आब आब हुए जाते हैं माह ओ अंजुम
लौ देती है ज़र्रों की जबीं देख ज़रा
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चेहरे की तब-ओ-ताब में कौंद लपके
इस ग़म-ओ-यास के समुंदर में
ता हद्द-ए-नज़र दमक रहे हैं ज़र्रे
तिरा तज़्किरा सू-ब-सू क्यूँ करें हम
बद-गुमाँ मुझ से न ऐ फ़स्ल-ए-बहाराँ होना
जब अहल-ए-गुलिस्ताँ को शुऊ'र आएगा
लाख काटो रगें सदाक़त की
मेरी ग़मगीन ओ ज़र्द सूरत को
ग़म की रातों के ख़्वाब लाया हूँ
आँखों में सहर झलक रही है गोया
महफ़िल उन की साक़ी उन का
बिजलियों की हँसी उड़ाने को