चेहरे की तब-ओ-ताब में कौंद लपके
आँखों में हसीन रात पलकें झपके
एहसास की उँगलियाँ जो छू लें उन को
भीगे हुए अन्फ़ास से अमृत टपके
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एहसास-ए-नशात की कमी देखोगे
फिर इस दुनिया से उम्मीद-ए-वफ़ा है
ख़ुदा से क्या मोहब्बत कर सकेगा
राख
सरहद-ए-होश से गुज़रता हूँ
ले के दिल दर्द पाएदार दिया
कौन सुलगते आँसू रोके आग के टुकड़े कौन चबाए
साक़िया साक़िया सँभाल उसे
शो'लों के भँवर मचल रहे हों जैसे
महफ़िल उन की साक़ी उन का
जो महरम-ए-गुलज़ार-ए-जहाँ होते हैं