गुनाहों से हमें रग़बत न थी मगर या रब
तिरी निगाह-ए-करम को भी मुँह दिखाना था
Habib Jalib
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राख
लाख काटो रगें सदाक़त की
तू मिरी ज़िंदगी का परतव है
एहसास-ए-नशात की कमी देखोगे
अमृत से फ़ज़ाएँ दम-ब-दम धुलती हैं
तिरा तज़्किरा सू-ब-सू क्यूँ करें हम
दुनिया है इरम से भी हसीं देख ज़रा
एक क्लर्क लड़की
चेहरे की तब-ओ-ताब में कौंद लपके
ले के दिल दर्द पाएदार दिया
ख़ुदा से लोग भी ख़ाइफ़ कभी थे
रौनक़ बढ़ेगी रू-ए-नशात-ए-जमाल की