मेरी फ़िक्र-ओ-नज़र के चेहरे पर
हादसों की कई ख़राशें हैं
ये मिरे शेर मेरे शेर नहीं
एक सद-चाक दिल की क़ाशें हैं
Javed Akhtar
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जब अहल-ए-गुलिस्ताँ को शुऊ'र आएगा
लाख काटो रगें सदाक़त की
ले के दिल दर्द पाएदार दिया
किसी के जौर-ओ-सितम का तो इक बहाना था
मैं तो क्या मुझ को देखने वाला
आँखों में सहर झलक रही है गोया
कैसे बे-सोज़ लोग हो यारो
अल्फ़ाज़ की रग रग में रचाता हूँ लहू
चाँदनी से धुली हुई रातें
ख़ुदा से लोग भी ख़ाइफ़ कभी थे
शो'लों के भँवर मचल रहे हों जैसे
बिजलियों की हँसी उड़ाने को