मुझ को ये दर-ब-दरी तू ने ही बख़्शी है मगर
जब चली घर से तो मैं नाम तिरा ले के चली
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बंजारे हैं रिश्तों की तिजारत नहीं करते
अपने चेहरे को बदलना तो बहुत मुश्किल है
उस तरफ़ से कोई तूफ़ान हवा ले के चली
रात को शम्अ की मानिंद पिघल कर देखो
मुझ को चराग़-ए-शाम की सूरत जला के देख
माना कि मैं हज़ार फ़सीलों में क़ैद हूँ