जो याद-ए-यार से गुफ़्त-ओ-शुनीद कर ली है
तो गोया फूल से ख़ुश्बू कशीद कर ली है
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ब-नाम-ए-अम्न-ओ-अमाँ कौन मारा जाएगा
वो एक लम्हा कि मुश्किल से कटने वाला था
क़बा-ए-जाँ पुरानी हो गई क्या
जो बात की थी हवा में बिखरने वाली थी
बूँद पानी को मिरा शहर तरस जाता है
शिकस्त
आप ही अपना सफ़र दुश्वार-तर मैं ने किया
कोई तो ज़ेहन के दर पर ज़रूर दस्तक दे
धूप से जिस्म बचाए रखना कितना मुश्किल है
सूरज के हम-सफ़र हैं हमारी उमंग ये
जब ख़बर ही न कोई मौसम-ए-गुल की आई