उस ने ये सोच के तोड़ा था
मिरा दिल
कि मिरे दिल में कोई अक्स ही
उस का न रहे
अब ये आलम है
कि जितने भी हैं दिल के टुकड़े
अक्स इतने ही मिरे दिल में हैं
शामिल उस के
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Anwar Masood
Habib Jalib
Wasi Shah
Gulzar
Javed Akhtar
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Sad Poetry
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Sharabi Poetry
Friends Poetry
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आवाज़ों की भीड़ में इतने शोर-शराबे में
जब ख़बर ही न कोई मौसम-ए-गुल की आई
बूँद पानी को मिरा शहर तरस जाता है
वो एक लम्हा कि मुश्किल से कटने वाला था
जो याद-ए-यार से गुफ़्त-ओ-शुनीद कर ली है
दिये अब शहर में रौशन नहीं हैं
क़बा-ए-जाँ पुरानी हो गई क्या
सफ़र का मरहला-ए-सख़्त ही ग़नीमत था
थके हुओं को जो मंज़िल कठिन ज़ियादा हुई
ब-नाम-ए-अम्न-ओ-अमाँ कौन मारा जाएगा
लफ़्ज़ भी जिस अहद में खो बैठे अपना ए'तिबार