आवाज़ों की भीड़ में इतने शोर-शराबे में
अपनी भी इक राय रखना कितना मुश्किल है
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Gulzar
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Anwar Masood
Jaun Eliya
Wasi Shah
Rahat Indori
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कोई तो ज़ेहन के दर पर ज़रूर दस्तक दे
जो याद-ए-यार से गुफ़्त-ओ-शुनीद कर ली है
हुदूद-ए-वक़्त के दरवाज़े मुंतज़िर हैं 'नसीम'
थके हुओं को जो मंज़िल कठिन ज़ियादा हुई
वो एक लम्हा कि मुश्किल से कटने वाला था
आप ही अपना सफ़र दुश्वार-तर मैं ने किया
क़बा-ए-जाँ पुरानी हो गई क्या
धूप से जिस्म बचाए रखना कितना मुश्किल है
सफ़र का मरहला-ए-सख़्त ही ग़नीमत था
ब-नाम-ए-अम्न-ओ-अमाँ कौन मारा जाएगा
बूँद पानी को मिरा शहर तरस जाता है
कभी तो सर्द लगा दोपहर का सूरज भी