पुर्सिश-ए-हाल से ग़म और न बढ़ जाए कहीं
हम ने इस डर से कभी हाल न पूछा अपना
Wasi Shah
Gulzar
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
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हर बार नया ले के जो फ़ित्ना नहीं आया
अब तक हमारी उम्र का बचपन नहीं गया
तेज़-रौ पानी की तीखी धार पर बहते हुए
धड़का था दिल कि प्यार का मौसम गुज़र गया
आगे पहुँचा जल का धारा बजरा पीछे छूट गया
आख़िरी गाड़ी गुज़रने की सदा भी आ गई
पेशानी-ए-हयात पे कुछ ऐसे बल पड़े
ये दश्त-ओ-दमन कोह ओ कमर किस के लिए है
देखा नहीं देखे हुए मंज़र के सिवा कुछ
मिरी क़ीमत को सुनते हैं तो गाहक लौट जाते हैं
क़हर था हिजरत में ख़ुद को बे-अमाँ करना तिरा