Ghazals of Natiq Gulavthi

Ghazals of Natiq Gulavthi
नामनातिक़ गुलावठी
अंग्रेज़ी नामNatiq Gulavthi

ज़ाहिर न था नहीं सही लेकिन ज़ुहूर था

वो मिज़ाज पूछ लेते हैं सलाम कर के देखो

वस्फ़-ए-जमाल-ए-ज़ौक़ है अहल-ए-निगाह का

उसी की देन है ग़म में गिला नहीं करता

तो आख़िर साज़-ए-हस्ती क्यूँ तरब-आहंग-ए-महफ़िल था

शम-ए-कुश्ता की तरह मैं तिरी महफ़िल से उठा

सर्द हो जाती है फ़िक्र-ए-जाह-ए-दुनिया जिस के बअ'द

रिंदान-ए-बादा-नोश की छागल उठा तो ला

रिंद की काएनात क्या है ख़ाक

रहते हैं इस तरह से ग़म-ओ-यास आस-पास

रह के अच्छा भी कुछ भला न हुआ

पहुँच गए तो करेंगे इधर-उधर की तलाश

नहीं रुकता तो जा ख़ुदा-हाफ़िज़

मुद्दतें हो गई होता नहीं फेरा तेरा

मिरे ग़म की उन्हें किस ने ख़बर की

मजनूँ से जो नफ़रत है दीवानी है तू लैला

महफ़िल-ए-नाज़ से मैं हो के परेशान उठा

क्यूँ ख़याल-ए-रंज-ओ-राहत से न हों बेगाना हम

क्या इरादे हैं वहशत-ए-दिल के

क्या इरादे हैं वहशत-ए-दिल के

किस को मेहरबाँ कहिए कौन मेहरबाँ अपना

ख़ुद हो के कुछ ख़ुदा से भी मर्द-ए-ख़ुदा न माँग

ख़िरद-आमोज़ हस्ती है मगर अब क्या कहूँ वो भी

कर दिया दहर को अंधेर का मस्कन कैसा

कभी सोज़-ए-दिल का गिला किया कभी लब से शोर-ए-फ़ुग़ाँ उठा

जुनूँ तलाश में है पा न ले बहार मुझे

जो सुनते हैं तो मैं मम्नून हूँ उन की इनायत का

जिस की हसरत थी उसे पा भी चुके खो भी चुके

जीने देगा भी हमें ऐ दिल जिएँ भी या न हम

इज़्तिराब-ए-दिल में आ जा कर दवाम आ ही गया

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