जब बोलो तो बोलो ऐसे कलेमात
मर्ग़ूब हों लोगों को जो मिस्ल-ए-नबात
आ जाए किसी के शीशा-ए-दिल में बाल
मुँह से न निकालो ऐसी कोई बात
Rahat Indori
Javed Akhtar
Parveen Shakir
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Gulzar
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एहसास को लफ़्ज़ों में पिरोने का फ़न
हर बात को पहले तौलता है शाएर
मश्शातगी-ए-ज़ुल्फ़-ए-सुख़न का एहसास
हो आँखें तो देख मेरे ग़म की तहरीर
गूँगे अल्फ़ाज़ को नवा देता है
बेदारी-ए-एहसास है उलझन मेरी
शाएर शाएर है हो जो अहल-ए-ईमाँ