फ़ोन पर बात हुई उस से तो अंदाज़ा हुआ
अपनी आवाज़ में बस आज ही शामिल हुआ मैं
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सीने में मिरे बोझ भी और दहका चमन भी
मिरे अंदर मिरा कुछ भी नहीं बस तू है बाक़ी
हुए हैं फिर से अँधेरों के हौसले रौशन
दर्द इस दर्जा मिले ज़ब्त में कामिल हुआ मैं
अब पसर आए हैं रिश्तों पे कुहासे कितने
ख़ुद से उस ने नजात पा ली है
जो ये कहते थे कि मर जाना है
बिना रोए गुज़रना उस गली से
जिया हूँ उम्र भर मैं भी अकेला
ये जो मुझ में अज़ाब है प्यारे
चोट खाए हुए लम्हों का सितम है कि उसे