मुँह ज़र्द ओ आह-ए-सर्द ओ लब-ए-ख़ुश्क ओ चश्म-ए-तर
सच्ची जो दिल-लगी है तो क्या क्या गवाह है
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दिल न लो दिल का ये लेना है न इख़्फ़ा होगा
जिस्म क्या रूह की है जौलाँ-गाह
अब तो ज़रा सा गाँव भी बेटी न दे उसे
है दसहरे में भी यूँ गर फ़रहत-ओ-ज़ीनत 'नज़ीर'
जब आँख उस सनम से लड़ी तब ख़बर पड़ी
पैसा
आग़ोश-ए-तसव्वुर में जब मैं ने उसे मस़्का
क़मर ने रात कहा उस की देख कर सूरत
कब ग़ैर ने ये सितम सहे चुप
हम देखें किस दिन हुस्न ऐ दिल उस रश्क-ए-परी का देखेंगे
शोर आहों का उठा नाला फ़लक सा निकला
कल जो रुख़-ए-अ'रक़-फ़िशाँ यार ने टुक दिखा दिया