ता उम्र फिर न होगी उजालों की आरज़ू
तू भी किसी चराग़ की लौ से लिपट के देख
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अपनी आँखों के समुंदर में उतर जाने दे
खड़ा हूँ आज भी रोटी के चार हर्फ़ लिए
जब ज़बानों में यहाँ सोने के ताले पड़ गए
इस लिए चल न सका कोई भी ख़ंजर मुझ पर
किसी ने हाथ बढ़ाया है दोस्ती के लिए
ये हैं तैराक मगर हाल ये इन के देखे
ज़ख़्म कितने तिरी चाहत से मिले हैं मुझ को
धुआँ बना के फ़ज़ा में उड़ा दिया मुझ को
मैं एक क़र्ज़ हूँ सर से उतार दे मुझ को
मैं ने दुनिया छोड़ दी लेकिन मिरा मुर्दा बदन