किसी ने हाथ बढ़ाया है दोस्ती के लिए
फिर एक बार ख़ुदा ए'तिबार दे मुझ को
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ख़ूब गए परदेस कि अपने दीवार-ओ-दर भूल गए
अपनी आँखों के समुंदर में उतर जाने दे
ज़ख़्म कितने तिरी चाहत से मिले हैं मुझ को
खड़ा हूँ आज भी रोटी के चार हर्फ़ लिए
कौन पहचाने मुझे शब भर तो ख़तरों में रहा
इस लिए चल न सका कोई भी ख़ंजर मुझ पर
मैं एक क़र्ज़ हूँ सर से उतार दे मुझ को
मैं ने दुनिया छोड़ दी लेकिन मिरा मुर्दा बदन
साथ चलना है तो फिर छोड़ दे सारी दुनिया
याद नहीं क्या क्या देखा था सारे मंज़र भूल गए
जब न आने की क़सम आप ने खा रक्खी थी