मैं ने दुनिया छोड़ दी लेकिन मिरा मुर्दा बदन
एक उलझन की तरह क़ातिल की नज़रों में रहा
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साथ चलना है तो फिर छोड़ दे सारी दुनिया
रोज़ ख़्वाबों में नए रंग भरा करता था
अपनी आँखों के समुंदर में उतर जाने दे
कौन पहचाने मुझे शब भर तो ख़तरों में रहा
जब ज़बानों में यहाँ सोने के ताले पड़ गए
इस लिए चल न सका कोई भी ख़ंजर मुझ पर
मैं एक क़र्ज़ हूँ सर से उतार दे मुझ को
आ गया याद उन्हें अपने किसी ग़म का हिसाब
ज़ख़्म कितने तिरी चाहत से मिले हैं मुझ को
खड़ा हूँ आज भी रोटी के चार हर्फ़ लिए
आग दुनिया की लगाई हुई बुझ जाएगी