आग दुनिया की लगाई हुई बुझ जाएगी
कोई आँसू मिरे दामन पे बिखर जाने दे
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इस लिए चल न सका कोई भी ख़ंजर मुझ पर
जब ज़बानों में यहाँ सोने के ताले पड़ गए
ज़ख़्म कितने तिरी चाहत से मिले हैं मुझ को
मैं ने दुनिया छोड़ दी लेकिन मिरा मुर्दा बदन
रोज़ ख़्वाबों में नए रंग भरा करता था
आ गया याद उन्हें अपने किसी ग़म का हिसाब
कुछ देर सादगी के तसव्वुर से हट के देख
जब न आने की क़सम आप ने खा रक्खी थी
अपनी आँखों के समुंदर में उतर जाने दे
मैं एक ज़र्रा बुलंदी को छूने निकला था
कौन पहचाने मुझे शब भर तो ख़तरों में रहा