आ गया याद उन्हें अपने किसी ग़म का हिसाब
हँसने वालों ने मिरे अश्क जो गिन के देखे
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कुछ देर सादगी के तसव्वुर से हट के देख
ख़ूब गए परदेस कि अपने दीवार-ओ-दर भूल गए
धुआँ बना के फ़ज़ा में उड़ा दिया मुझ को
अपनी आँखों के समुंदर में उतर जाने दे
मैं एक क़र्ज़ हूँ सर से उतार दे मुझ को
याद नहीं क्या क्या देखा था सारे मंज़र भूल गए
जब ज़बानों में यहाँ सोने के ताले पड़ गए
कौन पहचाने मुझे शब भर तो ख़तरों में रहा
आग दुनिया की लगाई हुई बुझ जाएगी
ज़ख़्म कितने तिरी चाहत से मिले हैं मुझ को
इस लिए चल न सका कोई भी ख़ंजर मुझ पर
साथ चलना है तो फिर छोड़ दे सारी दुनिया