कभी करना हो अंदाज़ा जब अपने दर्द का मुझ को
मैं उस बेदर्द के दिल को दुखा कर देखा लेता हूँ
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तुझ को लिखना है तो ऐसा कोई सफ़हा लिख दे
मैं राख होता गया और चराग़ जलता रहा
ये तेरे मिरे हाथ
हर नक़्श है वजूद-ए-फ़ना मेरे सामने
जब वो साथ होता है
पहले इंकार बहुत करता है
साहिल की रेत चाँद के मुँह पर न डालिए
उस ने ख़त में भेजे हैं
दुआ का फूल पड़ा रह गया है थाली में
यूँ तुझे देख के चौंक उठती हैं सोई यादें
कौन हूँ क्यूँ ज़िंदा हूँ सोचता रहता हूँ
मिट्टी से कुछ ख़्वाब उगाने आया हूँ