उस ने ख़त में भेजे हैं
भीगी रात और भीगा दिन
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ये तेरे मिरे हाथ
रंग लाई है हसरत-ए-तामीर
नींद जब ख़्वाब को पुकारती है
बरस रही थी बारिश बाहर
उभर रहे हैं कई हाथ शब के पर्दे से
जब वो साथ होता है
कभी करना हो अंदाज़ा जब अपने दर्द का मुझ को
ख़्वाब क्या था जो मिरे सर में रहा
मिट्टी पे कोई नक़्श भी उभरा न रहेगा
दुआ का फूल पड़ा रह गया है थाली में
गलियाँ उदास खिड़कियाँ चुप दर खुले हुए
रात किनारा दरिया दिन