मैं उसे कैसे जीत सकता हूँ
वो मुझे अपना जिस्म हारती है
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यूँ तुझे देख के चौंक उठती हैं सोई यादें
चाँद को पूरा होने दो
कोई मुझ को ढूँढने वाला
दिल-तंग हूँ मकान के अंदर पड़ा हुआ
ख़ाक उगाती हैं सूरतें क्या क्या
ख़्वाब क्या था जो मिरे सर में रहा
पत्थर होता जाता हूँ
मेरी आँखों को मिरी शक्ल दिखा दे कोई
कौन हूँ क्यूँ ज़िंदा हूँ सोचता रहता हूँ
जागते हैं सोते हैं
साहिल की रेत चाँद के मुँह पर न डालिए
वो आया तो इतना प्यार देगा