मुश्किलों में मुस्कुराना सीखिए
फूल बंजर में उगाना सीखिए
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नहीं है अरे ये बग़ावत नहीं है
मुश्किलों की यही हैं बड़ी मुश्किलें
तुम से मिल कर देर तलक
मुझे रास वीरानियाँ आ गई हैं
नज़ाकत है न ख़ुशबू और न कोई दिलकशी ही है
डाल दीं भूके को जिस में रोटियाँ
जिए ख़ुद के लिए गर हम मज़ा तब क्या है जीने में
बात सच-मुच में निराली हो गई
सोचता हूँ ये सोच कर मैं उसे
आप आँखों में बस गए जब से
इधर ये ज़बाँ कुछ बताती नहीं है