मुझे रास वीरानियाँ आ गई हैं
तिरी याद भी अब सताती नहीं है
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तुम से मिल कर देर तलक
सोचता हूँ ये सोच कर मैं उसे
मुश्किलों में मुस्कुराना सीखिए
गर न समझा तो 'नीरज' लगेगी कठिन
डाल दीं भूके को जिस में रोटियाँ
घुटन तड़पन उदासी अश्क रुस्वाई अकेला-पन
अब रिश्तों में गहराई
मुश्किलों की यही हैं बड़ी मुश्किलें
जिए ख़ुद के लिए गर हम मज़ा तब क्या है जीने में
बा'द मुद्दत के वो मिला है मुझे