चूड़ियाँ क्यूँ उतार दीं तुम ने
सुब्हें कितनी उदास रहती हैं
Jaun Eliya
Rahat Indori
Wasi Shah
Habib Jalib
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(389) Peoples Rate This
हसरतों को न ज़ेहन रुस्वा करें
बढ़ गया मोल ज़िंदगानी का
रौशनी का साथ महँगा पड़ गया है
मिला है अपने होने का निशाँ इक
ज़ेर-ए-लब हम ने तिश्नगी कर ली
एक भी पत्थर न आया राह में
उन का दीदार मेरी क़िस्मत में
तेरे हिस्से का बच गया है कुछ
ब-ज़ाहिर दश्त की जानिब तो बढ़ता जा रहा है
रात अब अपने इख़्तिताम पे है
जुनूँ को ढाल बनाया तो बच गए वर्ना