ब-ज़ाहिर दश्त की जानिब तो बढ़ता जा रहा है
मगर सब रास्ते भी याद करता जा रहा है
Parveen Shakir
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Rahat Indori
Anwar Masood
Jaun Eliya
Habib Jalib
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
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जुनूँ को ढाल बनाया तो बच गए वर्ना
रौशनी का साथ महँगा पड़ गया है
तेरे हिस्से का बच गया है कुछ
चूड़ियाँ क्यूँ उतार दीं तुम ने
हसरतों को न ज़ेहन रुस्वा करें
ज़ेर-ए-लब हम ने तिश्नगी कर ली
मैं हवा के दोश पे रक्खा हुआ
उन का दीदार मेरी क़िस्मत में
मिला है अपने होने का निशाँ इक
रात अब अपने इख़्तिताम पे है
बढ़ गया मोल ज़िंदगानी का