जुनूँ को ढाल बनाया तो बच गए वर्ना
ये ज़िंदगी हमें मजबूर कर भी सकती थी
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उन का दीदार मेरी क़िस्मत में
एक भी पत्थर न आया राह में
मैं एक पल में अँधेरे से हार जाऊँगा
यूँ तो मेरा सफ़र था सहरा तक
हसरतों को न ज़ेहन रुस्वा करें
रौशनी का साथ महँगा पड़ गया है
ज़ेर-ए-लब हम ने तिश्नगी कर ली
मैं हवा के दोश पे रक्खा हुआ
बढ़ गया मोल ज़िंदगानी का
हिफ़ाज़त हर किसी की वो बड़ी ख़ूबी से करता है
चूड़ियाँ क्यूँ उतार दीं तुम ने