हिफ़ाज़त हर किसी की वो बड़ी ख़ूबी से करता है
हवा भी चलती रहती है दिया भी जलता रहता है
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रौशनी का साथ महँगा पड़ गया है
ज़ेर-ए-लब हम ने तिश्नगी कर ली
बढ़ गया मोल ज़िंदगानी का
उन का दीदार मेरी क़िस्मत में
ब-ज़ाहिर दश्त की जानिब तो बढ़ता जा रहा है
चूड़ियाँ क्यूँ उतार दीं तुम ने
मैं हवा के दोश पे रक्खा हुआ
मिला है अपने होने का निशाँ इक
जुनूँ को ढाल बनाया तो बच गए वर्ना
रात अब अपने इख़्तिताम पे है
यूँ तो मेरा सफ़र था सहरा तक