रात अब अपने इख़्तिताम पे है
एहतिरामन दिए बुझा दीजे
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ज़ेर-ए-लब हम ने तिश्नगी कर ली
ब-ज़ाहिर दश्त की जानिब तो बढ़ता जा रहा है
हिफ़ाज़त हर किसी की वो बड़ी ख़ूबी से करता है
यहाँ पर मिरा कुछ भी था ही नहीं
बढ़ गया मोल ज़िंदगानी का
मिला है अपने होने का निशाँ इक
तेरे हिस्से का बच गया है कुछ
उन का दीदार मेरी क़िस्मत में
हसरतों को न ज़ेहन रुस्वा करें
चूड़ियाँ क्यूँ उतार दीं तुम ने
मैं हवा के दोश पे रक्खा हुआ
मैं एक पल में अँधेरे से हार जाऊँगा