नोमान शौक़ कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का नोमान शौक़ (page 4)
नाम | नोमान शौक़ |
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अंग्रेज़ी नाम | Nomaan Shauque |
जन्म की तारीख | 1965 |
जन्म स्थान | Delhi |
आम मुआफ़ी के लिए
वो अपने शहर-ए-फ़राग़त से कम निकलता है
तबाह ख़ुद को उसे ला-ज़वाल करते हैं
सितारा-साज़ ये हम पर करम फ़रमाते रहते हैं
सारे चक़माक़-बदन आया था तय्यारी से
सहरा ओ शहर सब से आज़ाद हो रहा हूँ
सब फ़ना होते हुए शहर हैं निगरानी में
सब अपने अपने ख़ुदाओं में जा के बैठ गए
रात लम्बी थी सितारा मिरा ताजील में था
क़ाएदे बाज़ार के इस बार उल्टे हो गए
नए चराग़ की लौ पाँव से लिपटती है
मस्जिदों में क़त्ल होने की रिवायत है यहाँ
मैं ने भी अपने ध्यान में अपना सफ़र किया
किसी के साए किसी की तरफ़ लपकते हुए
ख़ुदा मुआफ़ करे ज़िंदगी बनाते हैं
जाने किस उम्मीद पे छोड़ आए थे घर-बार लोग
इतनी ताज़ीम हुई शहर में उर्यानी की
इस बार इंतिज़ाम तो सर्दी का हो गया
इंसानियत के ज़ोम ने बर्बाद कर दिया
हैं लापता ज़माने से सारे के सारे ख़्वाब
एक आयत पढ़ के अपने-आप पर दम कर दिया
डूबने वाला ही था साहिल बरामद कर लिया
दिन-ब-दिन घटती हुई उम्र पे नाज़िल हो जाए
दिल भी एहसासात भी जज़्बात भी
दश्त में रात बनाते हुए डरता हूँ मैं
भरे हुए हैं अभी रौशनी की दौलत से
बताऊँ कैसे कि सच बोलना ज़रूरी है
बरसों पुराने ज़ख़्म को बे-कार कर दिया
ऐसे मिले नसीब से सारे ख़ुदा कि बस
अब ऐसी वैसी मोहब्बत को क्या सँभालूँ मैं