आँख खुल जाए तो घर मातम-कदा बन जाएगा
चल रही है साँस जब तक चल रहा हूँ नींद में
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मैं ख़ानक़ाह-ए-बदन से उदास लौट आया
कथार्सिस
बताऊँ कैसे कि सच बोलना ज़रूरी है
मैं अपने साए में बैठा था कितनी सदियों से
बड़े घरों में रही है बहुत ज़माने तक
अच्छा इश्क़
चख लिया उस ने प्यार थोड़ा सा
मैं ने भी अपने ध्यान में अपना सफ़र किया
कोई समझाए मिरे मद्दाह को
दिल भी एहसासात भी जज़्बात भी
ऐसे मिले नसीब से सारे ख़ुदा कि बस
क़ाएदे बाज़ार के इस बार उल्टे हो गए