मैं ख़ानक़ाह-ए-बदन से उदास लौट आया
यहाँ भी चाहने वालों में ख़ाक बटती है
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Habib Jalib
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
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पेश लफ़्ज़ एक मोहब्बत नामे का
क़ाएदे बाज़ार के इस बार उल्टे हो गए
ये ख़्वाब कौन दिखाने लगा तरक़्क़ी के
खिल रहे हैं मुझ में दुनिया के सभी नायाब फूल
दूर जितना भी चला जाए मगर
आम मुआफ़ी के लिए
बताऊँ कैसे कि सच बोलना ज़रूरी है
ज़रा ये हाथ मेरे हाथ में दो
कथार्सिस
आसमानों से ज़मीं की तरफ़ आते हुए हम
और मत देखिए अब अद्ल-ए-जहाँगीर के ख़्वाब
ग़म इस क़दर नहीं थे ढले जितने शेर में