क़ाएदे बाज़ार के इस बार उल्टे हो गए
आप तो आए नहीं पर फूल महँगे हो गए
Rahat Indori
Wasi Shah
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Allama Iqbal
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
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और मत देखिए अब अद्ल-ए-जहाँगीर के ख़्वाब
दूर जितना भी चला जाए मगर
एक आयत पढ़ के अपने-आप पर दम कर दिया
किसी के साए किसी की तरफ़ लपकते हुए
ऐसे मिले नसीब से सारे ख़ुदा कि बस
चाहता हूँ मैं तशद्दुद छोड़ना
फ़लक का थाल ही हम ने उलट डाला ज़मीं पर
पेश लफ़्ज़ एक मोहब्बत नामे का
रेल देखी है कभी सीने पे चलने वाली
फ़्रीज़र में रक्खी शाम
मौसम-ए-वज्द में जा कर मैं कहाँ रक़्स करूँ
मैं अपने साए में बैठा था कितनी सदियों से