पूछो कि उस के ज़ेहन में नक़्शा भी है कोई
जिस ने भरे जहान को ज़ेर-ओ-ज़बर किया
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एक करवट पे रात क्या कटती
सुनाई देती है सात आसमाँ में गूँज अपनी
मैं अपने साए में बैठा था कितनी सदियों से
रात लम्बी थी सितारा मिरा ताजील में था
फिर इस मज़ाक़ को जम्हूरियत का नाम दिया
मोहब्बत वाले हैं कितने ज़मीं पर
रेल देखी है कभी सीने पे चलने वाली
हमें बुरा नहीं लगता सफ़ेद काग़ज़ भी
चख लिया उस ने प्यार थोड़ा सा
चाहता हूँ कि पुकारे तुम्हें दिन रात जहाँ
हैं लापता ज़माने से सारे के सारे ख़्वाब
डूबने वाला ही था साहिल बरामद कर लिया