रेल देखी है कभी सीने पे चलने वाली
याद तो होंगे तुझे हाथ हिलाते हुए हम
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तबाह कर तो दूँ ज़ाहिर-परस्त दुनिया को
मस्जिदों में क़त्ल होने की रिवायत है यहाँ
भरे हुए हैं अभी रौशनी की दौलत से
कुछ न था मेरे पास खोने को
दिल दे न दे मगर ये तिरा हुस्न-ए-बे-मिसाल
बड़े घरों में रही है बहुत ज़माने तक
फ़्रीज़र में रक्खी शाम
सहरा ओ शहर सब से आज़ाद हो रहा हूँ
एक दिन दोनों ने अपनी हार मानी एक साथ
सारे चक़माक़-बदन आया था तय्यारी से
वो अपने शहर-ए-फ़राग़त से कम निकलता है
कैसी जन्नत के तलबगार हैं तू जानता है