तबाह कर तो दूँ ज़ाहिर-परस्त दुनिया को
ये आईने भी मिरे लोग ही बनाते हैं
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लिपटा भी एक बार तो किस एहतियात से
बरसों पुराने ज़ख़्म को बे-कार कर दिया
इंसानियत के ज़ोम ने बर्बाद कर दिया
सहरा ओ शहर सब से आज़ाद हो रहा हूँ
मोहब्बत वाले हैं कितने ज़मीं पर
उस का मिलना कोई मज़ाक़ है क्या
फिर इस मज़ाक़ को जम्हूरियत का नाम दिया
मैं ने भी अपने ध्यान में अपना सफ़र किया
रोक दो ये रौशनी की तेज़ धार
इश्क़ क्या है ख़ूबसूरत सी कोई अफ़्वाह बस
कथार्सिस
हर मुत्तक़ी को इस से सबक़ लेना चाहिए