इश्क़ क्या है ख़ूबसूरत सी कोई अफ़्वाह बस
वो भी मेरे और तुम्हारे दरमियाँ उड़ती हुई
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क़ाएदे बाज़ार के इस बार उल्टे हो गए
हमें बुरा नहीं लगता सफ़ेद काग़ज़ भी
पूछो कि उस के ज़ेहन में नक़्शा भी है कोई
जिज़्या वसूल कीजिए या शहर उजाड़िए
सारे चक़माक़-बदन आया था तय्यारी से
मिरा कुछ रास्ते में खो गया है
सारे चक़माक़-बदन आए थे तय्यारी से
फ़्रीज़र में रक्खी शाम
उस का मिलना कोई मज़ाक़ है क्या
दिल दे न दे मगर ये तिरा हुस्न-ए-बे-मिसाल
अब ऐसी वैसी मोहब्बत को क्या सँभालूँ मैं