उस का मिलना कोई मज़ाक़ है क्या
बस ख़यालों में जी उठा हूँ मैं
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सुनाई देती है सात आसमाँ में गूँज अपनी
फूल वो रखता गया और मैं ने रोका तक नहीं
अब इसे ग़र्क़ाब करने का हुनर भी सीख लूँ
अब ऐसी वैसी मोहब्बत को क्या सँभालूँ मैं
मैं ने भी अपने ध्यान में अपना सफ़र किया
चख लिया उस ने प्यार थोड़ा सा
कुछ न था मेरे पास खोने को
वो तो कहिए आप की ख़ुशबू ने पहचाना मुझे
हम को डरा कर, आप को ख़ैरात बाँट कर
नए चराग़ की लौ पाँव से लिपटती है
ख़ुदा मुआफ़ करे ज़िंदगी बनाते हैं