अब इसे ग़र्क़ाब करने का हुनर भी सीख लूँ
इस शिकारे को अगर फूलों से ढक सकता हूँ मैं
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खिल रहे हैं मुझ में दुनिया के सभी नायाब फूल
कुछ न था मेरे पास खोने को
बड़े घरों में रही है बहुत ज़माने तक
नाम ही ले ले तुम्हारा कोई
अच्छा इश्क़
फ़लक का थाल ही हम ने उलट डाला ज़मीं पर
कैसी जन्नत के तलबगार हैं तू जानता है
आइने का सामना अच्छा नहीं है बार बार
तबाह ख़ुद को उसे ला-ज़वाल करते हैं
तौक़-ए-बदन उतार के फेंका ज़मीं से दूर
बस तिरे आने की इक अफ़्वाह का ऐसा असर
रेल देखी है कभी सीने पे चलने वाली