बस तिरे आने की इक अफ़्वाह का ऐसा असर
कैसे कैसे लोग थे बीमार अच्छे हो गए
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Jaun Eliya
Anwar Masood
Gulzar
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(304) Peoples Rate This
तुम तो सर्दी की हसीं धूप का चेहरा हो जिसे
सड़क के दोनों तरफ़ ख़ैरियत है
फिर इस मज़ाक़ को जम्हूरियत का नाम दिया
रो रो के लोग कहते थे जाती रहेगी आँख
किसी के साए किसी की तरफ़ लपकते हुए
ये ख़्वाब कौन दिखाने लगा तरक़्क़ी के
फ़्रीज़र में रक्खी शाम
कथार्सिस
दिन-ब-दिन घटती हुई उम्र पे नाज़िल हो जाए
भीक
मुझे कुछ याद आता है
सब अपने अपने ख़ुदाओं में जा के बैठ गए