तुम तो सर्दी की हसीं धूप का चेहरा हो जिसे
देखते रहते हैं दीवार से जाते हुए हम
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आँख खुल जाए तो घर मातम-कदा बन जाएगा
कथार्सिस
और मत देखिए अब अद्ल-ए-जहाँगीर के ख़्वाब
दिन को रुख़्सत किया बहाने से
अपनी मर्ज़ी के ख़िलाफ़
एक करवट पे रात क्या कटती
डूबने वाला ही था साहिल बरामद कर लिया
कभी लिबास कभी बाल देखने वाले
चाहता हूँ कि पुकारे तुम्हें दिन रात जहाँ
मिरा कुछ रास्ते में खो गया है
पाँव के नीचे से पहले खींच ली सारी ज़मीं
सैर-ए-दुनिया को जाते हो जाओ