कभी लिबास कभी बाल देखने वाले
तुझे पता ही नहीं हम सँवर चुके दिल से
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अब इसे ग़र्क़ाब करने का हुनर भी सीख लूँ
फिर इस मज़ाक़ को जम्हूरियत का नाम दिया
बरसों पुराने ज़ख़्म को बे-कार कर दिया
ज़रा ये हाथ मेरे हाथ में दो
सारे चक़माक़-बदन आए थे तय्यारी से
आसमानों से ज़मीं की तरफ़ आते हुए हम
सब जहाँगीर नियामों से निकल आएँगे
नाम से उस के पुकारूँ ख़ुद को
सहरा ओ शहर सब से आज़ाद हो रहा हूँ
मुझ को भी पहले-पहल अच्छे लगे थे ये गुलाब
इस बार इंतिज़ाम तो सर्दी का हो गया
हर मुत्तक़ी को इस से सबक़ लेना चाहिए