हर मुत्तक़ी को इस से सबक़ लेना चाहिए
जन्नत की चाह ने जिसे शद्दाद कर दिया
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रात लम्बी थी सितारा मिरा ताजील में था
वो अपने शहर-ए-फ़राग़त से कम निकलता है
हमें बुरा नहीं लगता सफ़ेद काग़ज़ भी
फिर इस मज़ाक़ को जम्हूरियत का नाम दिया
जाने किस उम्मीद पे छोड़ आए थे घर-बार लोग
इश्क़ में सच्चा था वो मेरी तरह
हम जैसों ने जान गँवाई पागल थे
तबाह ख़ुद को उसे ला-ज़वाल करते हैं
कथार्सिस
दिन को रुख़्सत किया बहाने से
कबूतरों में ये दहशत कहाँ से दर आई
इश्क़ क्या है ख़ूबसूरत सी कोई अफ़्वाह बस