हम बहुत पछताए आवाज़ों से रिश्ता जोड़ कर
शोर इक लम्हे का था और ज़िंदगी भर का सुकूत
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Parveen Shakir
Habib Jalib
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Anwar Masood
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किसी के साए किसी की तरफ़ लपकते हुए
रो रो के लोग कहते थे जाती रहेगी आँख
फ़क़ीर लोग रहे अपने अपने हाल में मस्त
पाँव के नीचे से पहले खींच ली सारी ज़मीं
इश्क़ में सच्चा था वो मेरी तरह
ये ख़्वाब कौन दिखाने लगा तरक़्क़ी के
बदन ने कितनी बढ़ा ली है सल्तनत अपनी
आसमानों से ज़मीं की तरफ़ आते हुए हम
तक़वा
हैं लापता ज़माने से सारे के सारे ख़्वाब
और मत देखिए अब अद्ल-ए-जहाँगीर के ख़्वाब
सब फ़ना होते हुए शहर हैं निगरानी में