हम बहुत पछताए आवाज़ों से रिश्ता जोड़ कर
शोर इक लम्हे का था और ज़िंदगी भर का सुकूत
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दिल दे न दे मगर ये तिरा हुस्न-ए-बे-मिसाल
पेश लफ़्ज़ एक मोहब्बत नामे का
बस तिरे आने की इक अफ़्वाह का ऐसा असर
मुझे कुछ याद आता है
दिन को रुख़्सत किया बहाने से
सड़क के दोनों तरफ़ ख़ैरियत है
मैं अपने साए में बैठा था कितनी सदियों से
इतनी ताज़ीम हुई शहर में उर्यानी की
बड़े घरों में रही है बहुत ज़माने तक
नाम ही ले ले तुम्हारा कोई
ज़रा ये हाथ मेरे हाथ में दो
मैं ख़ानक़ाह-ए-बदन से उदास लौट आया