हम भी माचिस की तीलियों से थे
जो हुआ सिर्फ़ एक बार हुआ
Mir Taqi Mir
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उस का मिलना कोई मज़ाक़ है क्या
तक़वा
अब इसे ग़र्क़ाब करने का हुनर भी सीख लूँ
जाने किस उम्मीद पे छोड़ आए थे घर-बार लोग
कथार्सिस
उस ने हँस कर हाथ छुड़ाया है अपना
सारे चक़माक़-बदन आया था तय्यारी से
मैं ख़ानक़ाह-ए-बदन से उदास लौट आया
पेश लफ़्ज़ एक मोहब्बत नामे का
वो अपने शहर-ए-फ़राग़त से कम निकलता है
इंसानियत के ज़ोम ने बर्बाद कर दिया
आसमानों से ज़मीं की तरफ़ आते हुए हम