हम जैसों ने जान गँवाई पागल थे
दुनिया जैसी कल थी बिल्कुल वैसी है
Anwar Masood
Parveen Shakir
Gulzar
Allama Iqbal
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Jaun Eliya
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
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पाँव के नीचे से पहले खींच ली सारी ज़मीं
कबूतरों में ये दहशत कहाँ से दर आई
अब ऐसी वैसी मोहब्बत को क्या सँभालूँ मैं
कोई समझाए मिरे मद्दाह को
सब जहाँगीर नियामों से निकल आएँगे
दिन को रुख़्सत किया बहाने से
हमें बुरा नहीं लगता सफ़ेद काग़ज़ भी
नाम से उस के पुकारूँ ख़ुद को
जिज़्या वसूल कीजिए या शहर उजाड़िए
एक आयत पढ़ के अपने-आप पर दम कर दिया
डर डर के जागते हुए काटी तमाम रात
और मत देखिए अब अद्ल-ए-जहाँगीर के ख़्वाब