हम को डरा कर, आप को ख़ैरात बाँट कर
इक शख़्स रातों-रात जहाँगीर हो गया
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दिल दे न दे मगर ये तिरा हुस्न-ए-बे-मिसाल
कुछ न था मेरे पास खोने को
फ़लक का थाल ही हम ने उलट डाला ज़मीं पर
ख़ुदा मुआफ़ करे सारे मुंसिफ़ों के गुनाह
वो तो कहिए आप की ख़ुशबू ने पहचाना मुझे
सड़क के दोनों तरफ़ ख़ैरियत है
तुम तो सर्दी की हसीं धूप का चेहरा हो जिसे
कथार्सिस
अच्छा इश्क़
कबूतरों में ये दहशत कहाँ से दर आई
बरसों पुराने ज़ख़्म को बे-कार कर दिया
वो अपने शहर-ए-फ़राग़त से कम निकलता है