कबूतरों में ये दहशत कहाँ से दर आई
कि मस्जिदों से भी कुछ दूर जा के बैठ गए
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मैं अपने साए में बैठा था कितनी सदियों से
फ़क़ीर लोग रहे अपने अपने हाल में मस्त
सारे चक़माक़-बदन आया था तय्यारी से
हैं लापता ज़माने से सारे के सारे ख़्वाब
तौक़-ए-बदन उतार के फेंका ज़मीं से दूर
कथार्सिस
ऐसी ही एक शब में किसी से मिला था दिल
सैर-ए-दुनिया को जाते हो जाओ
वो साँप जिस ने मुझे आज तक डसा भी नहीं
अब इसे ग़र्क़ाब करने का हुनर भी सीख लूँ
क़ाएदे बाज़ार के इस बार उल्टे हो गए